“वन नेशन, वन इलेक्शन” विधेयक: क्या है इसका उद्देश्य और क्या होंगे इसके फायदे-नुकसान?
वर्तमान में भारतीय संसद का शीतकालीन सत्र जारी है, जिसमें “वन नेशन, वन इलेक्शन” विधेयक पर चर्चा तेज हो गई है। इस विधेयक को लेकर राजनीति और प्रशासनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बहस हो रही है, खासकर एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा की गई सिफारिशों के बाद।
वन नेशन, वन इलेक्शन क्या है?
“वन नेशन, वन इलेक्शन” का मतलब है कि भारत में लोकसभा चुनाव और राज्य विधानसभा चुनाव एक ही समय पर आयोजित किए जाएं। यह प्रस्तावित व्यवस्था चुनावों को सिंपल और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से है।
इसमें लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ होंगे, जिससे समय, संसाधन, और प्रशासनिक प्रयासों में बचत हो सकेगी।
समिति की सिफारिशें
मार्च 2024 में एक उच्च स्तरीय समिति, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने की, ने इस व्यवस्था को लागू करने की सिफारिश की। समिति का सुझाव है कि पहले लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराया जाए, और इसके बाद स्थानीय निकाय चुनावों को समन्वित किया जाए।
भारत में समानांतर चुनावों का इतिहास
भारत में समानांतर चुनावों की परंपरा पहले 1952 से 1962 तक थी, लेकिन बाद में राजनीतिक अस्थिरता और क्षेत्रीय मुद्दों के कारण यह व्यवस्था समाप्त हो गई। 2019 में, कुछ राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, और सिक्किम में राज्य विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ हुए थे।
वन नेशन, वन इलेक्शन के फायदे
वित्तीय बचत: एक साथ चुनावों से चुनाव आयोग का खर्च घटेगा, और ₹4500 करोड़ तक की बचत हो सकती है। इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा।
राजनीतिक स्थिरता: चुनावों के एक साथ होने से पार्टी बदलने का संकट कम होगा, जिससे भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता में कमी आएगी।
नीति स्थिरता: एक साथ चुनाव होने से नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी, और सरकारें अपनी योजनाओं पर लंबे समय तक काम कर सकेंगी।
प्रशासनिक दक्षता: चुनावी प्रक्रिया को एक साथ करने से प्रशासनिक कार्यों में सुधार होगा और संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा।
सुरक्षा बलों का बेहतर उपयोग: चुनाव एक साथ होने से सुरक्षा बलों के खर्च में कमी आएगी और उनका अधिक प्रभावी तरीके से उपयोग होगा।
मतदाता मतदान में वृद्धि: एक साथ चुनावों से मतदाताओं का उत्साह बढ़ेगा, जिससे मतदान में वृद्धि हो सकती है।
राज्य वित्त में सुधार: मुफ्त योजनाओं की संख्या कम होगी और राज्य की वित्तीय स्थिति में सुधार हो सकता है।
वन नेशन, वन इलेक्शन के खिलाफ तर्क
जवाबदेही में कमी: नियमित चुनावों से सरकार जनता के प्रति अधिक उत्तरदायी रहती है, लेकिन एक साथ चुनावों से जवाबदेही कम हो सकती है।
संघीयता का संकट: एक साथ चुनावों से केंद्र सरकार को अधिक शक्ति मिल सकती है, जिससे राज्य सरकारों और क्षेत्रीय दलों की भूमिका कम हो सकती है।
लोकतंत्र की भावना: चुनावों के चक्र को एक साथ तय करना मतदाताओं के अधिकारों के उल्लंघन जैसा हो सकता है, और यह लोकतंत्र की भावना को प्रभावित कर सकता है।
मतदाता व्यवहार पर असर: एक साथ चुनाव होने से छोटे और क्षेत्रीय दलों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि वे अपने मुद्दों को प्रभावी तरीके से नहीं रख पाएंगे।
लागत में वृद्धि: ईवीएम और वीवीपीएटी की लागत में वृद्धि हो सकती है, जिससे चुनाव खर्च बढ़ जाएगा।
विघटन की चुनौती: यदि लोकसभा का जल्दी विघटन होता है, तो सभी राज्यों में चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
क्या होगा भविष्य में?
“वन नेशन, वन इलेक्शन” का प्रस्ताव भारत के चुनावी तंत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। हालांकि, इसके लागू होने से पहले इससे जुड़ी चुनौतियों और विपक्षी दलों की चिंताओं का समाधान आवश्यक होगा। यह व्यवस्था भारत के चुनावी तंत्र को अधिक प्रभावी और कम खर्चीला बना सकती है, लेकिन इसे लेकर सभी पक्षों की सहमति और सभी संबंधित मुद्दों का समाधान करना ज़रूरी होगा।
क्या आप इस बदलाव के पक्ष में हैं?